Indian History

प्राचीन भारत आज के भारत से बहुत बड़ा था। अखण्ड भारत आज के अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वर्मा तक फैला था।अध्ययन की दृष्टि से भारत के इतिहास को मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया है। हम तीनों भागों को प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत एवं आधुनिक भारत के रूप में अध्ययन करते है।

Ancient India प्राचीन भारत

प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत
प्राचीन भारत के इतिहास की जानकारी हमलोग विभिन्न स्रोतों से प्राप्त करते है। इसमें प्रमुख रूप से धार्मिक ग्रंथ, ऐतिहासिक ग्रंथ, महाकव्य, विदेशी यात्रियों का विवरण एवं पुरातात्विक साक्ष्य शामिल है।

Religious Texts धार्मिक ग्रंथ
कुछ ऐसे जो धार्मिक ग्रंथ है परन्तु इनसे इतिहास की भी जानकारी प्राप्त होती है। इन ग्रंथों में मुख्यतः ब्राह्मण साहित्य, बौद्ध साहित्य, जैन साहित्य प्रमुख है।

Historical Texts ऐतिहासिक ग्रंथ
ऐसे ग्रंथ जिनका संबंध राजा एवं उससे संबंधित जानकारी प्राप्त होती है। जैसे कल्हण की राजतरंगिणी कश्मीर की इतिहास के लिए कौटिल्य की रचना अर्थशास्त्र, बाणभट्ट के हर्षचरित आदि प्रमुख है।

Epic महाकाव्य
भारत के इतिहास की जानकारी महाकाव्य से भी प्राप्त होती है। भारत की जानकारी के लिए उपलब्ध महाकाव्य रामायण एवं महाभारत है।

Details of Foreign Travellers विदेशी यात्रियों के विवरण
वैसे यात्रियों जो भारत घूमने आए एवं अपनी यात्रा वृत्तान्त को लिखे जिनसे भारत की जानकारी प्राप्त होती है। ऐसे यात्रियों में हेरोडोटस जिन्होंने हिस्टोरिका नामक ग्रंथ की रचना की है। मेगास्थनीज की रचना इंडिका जिससे मौर्य काल की जानकारी प्राप्त होती है। एक यूनानी लेखक जो अज्ञात है ने भारतीय बंदरगाह एवं व्यापार पर अपनी ग्रंथ लिखा जिसकी ग्रंथ पेरीप्लस आंफ द एरिथ्रियन सी नाम से मशहूर है। टालेमी नामक रचनाकार ने ज्योग्राफी की रचना की प्लिनी ने नेचुरल हिस्टोरिका नामक ग्रंथ की रचना किया। चीनी यात्री फाह्यान, ह्वेनसांग, इत्सिंग ने भारत के संदर्भ अपनी यात्रा वृत्तान्त से भारत के बारे में जानकारी दी है अरबी लेखक अलबरुनी ने तहकीक ए हिंद की रचना की जिससे भारत की जानकारी प्राप्त होती है।

पुरातात्विक साक्ष्य
पुरातात्विक स्रोतों से भी हमें इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है। ऐसे स्रोतों में अभिलेख,स्मारक,मुहर इत्यादि प्रमुख है जिनसे प्राचीन भारत की जानकारी प्राप्त होती है।

प्रागैतिहासिक काल : पाषाण काल: आदिम मानव

अध्ययन की दृष्टि से पाषाण काल को तीन भागों में विभाजित किया जाता है

पुरापाषाण कल, मध्यपाषाण काल एवं नवपाषाण काल।

पुरापाषाण काल को भी तीन भागों में विभाजित किया गया है

निम्न पुरापाषाण काल, मध्य पुरापाषाण काल एवं उच्च पुरापाषाण काल।

निम्न पुरापाषाण काल:

इस युग का कालखंड 250000 ईसा पूर्व से 100000 ईसा पूर्व तक माना जाता है।
इस युग के मानव का जीवन अस्थिर था।
इस युग के मानव शिकार करके अपना भोजन करते थे।

इस काल के मानव आग का आविष्कार कर चुके थे।
इस युग के मानव मुख्य रूप से बड़े बड़े उपकरण बनाते थे।
इस युग के मनुष्य की प्रथम उपकरण कुल्हाड़ी मानी जाती है।
इस युग के मनुष्य पाकिस्तान के सोहन घाटी, तमिलनाडु के पल्वरम, मध्यप्रदेश के भीमबेटका में रहते थे।

मध्य पुरापाषाण काल:

इस काल का कालखंड 100000 ईसा पूर्व से 40000 ईसा पूर्व तक माना जाता है।
इस काल के मानव भी मुख्यत: शिकार पर आधारित थे।
इस युग के मानव अब आग का प्रयोग करने लगे थे।
इस युग के मानव का साक्ष्य प्रमुख रूप से उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर, महाराष्ट्र के नेवासा , मध्यप्रदेश के भीमबेटका आदि स्थानों से प्राप्त हुआ है।

उच्च पुरापाषाण काल:

इस काल की कालखंड 40000 ईसा पूर्व से 10000 ईसा पूर्व तक माना जाता है।
इस काल में ही आधुनिक मानव अर्थात होमोसेपियंस का उदय हुआ।
इस काल का मानव अब सुंदर उपकरण बनाने लगे।
इस काल के मानव की गतिविधि भारत के उत्तरप्रदेश के बेलनघाटी, आंध्रप्रदेश के रानीगुटा, चिंतामनुगावी, कर्नाटक के सोरापुर, बीजापुर, महाराष्ट्र के इनामगांव, बिहार के सिंहभूम आदि स्थानों में मिलती है।

मध्यपाषाण काल:
इस काल का कालखंड 10000 ईसा पूर्व से 4000 ईसा पूर्व तक माना जाता है।
इस दौर का मानव आखेटक यानी शिकार पर निर्भर तो था ही अब पशुपालन भी करने लगा था।
इस दौर का मानव अब अपने लिए आवास भी बनाने लगा था ।
पशुपालन का स्पष्ट साक्ष्य राजस्थान के बागौर से प्राप्त होता है।
आवास निर्माण का स्पष्ट साक्ष्य मध्यप्रदेश के आदमगढ़ से प्राप्त होता है।
इस दौर में अभी कृषि की शुरुआत नहीं हुईं है मनुष्य अभी भी आखेटक है।
मध्यपाषाण काल का साक्ष्य मुख्य रूप से मध्यप्रदेश के आदमगढ़, भीमबेटका, होशंगाबाद, राजस्थान के बागौर, गुजरात के लांघनाज, उत्तरप्रदेश के सरायनाहराय , महगढ़ा ,बिहार के मुंगेर, तमिलनाडु के तिरुनेलवेली आदि स्थानों से प्राप्त होती है।

नवपाषाण काल :
इस काल का कालखंड भारत में मुख्य रूप से 7000 ईसा पूर्व से 2500 ईसा पूर्व तक माना जाता है।
इस काल से कृषि की शुरुआत मानी जाती है।
जिस काल से कृषि की शुरुआत होती है उसी समय से नवपाषाण की शुरुआत मानी जाती है।
इस काल के मनुष्य स्थाई आवास निर्माण शुरू कर चुके है तथा एक ही स्थान पर रहना शुरू कर दिए ।
इस काल के मानव गर्त आवास निर्माण भी किए है जिसका साक्ष्य कश्मीर के बुर्जहोम एवं गुफ्फकरल नामक स्थान से प्राप्त होता है।
बुर्जहोम से कब्रों में मानव के साथ कुत्ते को दफनाने का प्रमाण प्राप्त हुआ है जिससे पाता चलता है कि इस काल का मनुष्य कुत्ते को पालता है।
इस काल का मानव पाषाण के साथ साथ उपकरण निर्माण के लिए अब जानवरों के हड्डियों का भी प्रयोग करने लगे।
बिहार के चिरांद नामक स्थान से जानवर के श्रृंग का बना हुआ सुवा प्राप्त हुआ है।
पाकिस्तान के बलूचिस्तान के मेहरगढ़ से गेंहू एवं जौ की खेती का साक्ष्य प्राप्त हुआ है यहां के लोग भेड़ एवं बकरी पाला करते थे इसका भी प्रमाण मिला है।
उत्तरप्रदेश के कोलडिहवा नामक स्थान से धान उत्पादन का सर्वप्रथम साक्ष्य प्राप्त हुआ है जो 7000 ईसा पूर्व का है।
कर्नाटक के पिक्लिहाल से एक ही जगह ढेर सारा राख का ढेर मिला है जो इंगित करता है कि इस काल का मानव समूह में जानवर पालता है।
इस काल से मनुष्य मृदभांड निर्माण करने लगे।

सिंधु घाटी सभ्यता:
सिंधु घाटी सभ्यता का कालखंड 2350 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व तक मानी जाती है।
सिंधु सभ्यता को कांस्य सभ्यता भी कहा जाता है क्योंकि इस सभ्यता के लोग एक विशेष प्रकार के धातु का निर्माण किए जिसे कांस्य कहा जाता है एवं इसी के नाम पर इस सभ्यता को कांस्यकालीन सभ्यता कहा जाता है।
इस सभ्यता में सर्वप्रथम हड़प्पा जगह की खोज हुई थी जिसके कारण इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।
यह सभ्यता त्रिभुजा आकार में फैला हुआ है।
इस सभ्यता का क्षेत्रफ़ल 1299600 वर्ग किलोमीटर तक फैला था।

हड़प्पा कालीन प्रमुख स्थल::
हड़प्पा: इस जगह को दयाराम साहनी द्वारा 1921 में खोजा गया। यह जगह पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के मोंटगोमरी जिला में स्थित है।
यह रावी नदी के किनारे बसा हुआ था।
यहां से स्वास्तिक चिन्ह, छह अन्नागार, अन्नागार के फर्श से गेंहू एवं जौ के दाने, श्रमिकों का रहने वाला बैरक, पीतल का बना एक्का,शंख का बना बैल,नटराज की मूर्ति, कब्रिस्तान R-37 की प्राप्ति हुई है।
यहां से प्राप्त मोहरों पर सबसे अधिक अंकन एक श्रृंगी पशु का है ।

मोहनजोदड़ो :
यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिला में स्थित है।
इस स्थल की खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 ईस्वी में की।
मोहनजोदड़ो को मृतकों का टीला भी कहते है क्योंकि यहां से 42 कंकाल की प्राप्ति हुई थी।
यहां से पशुपति मुहर की प्राप्ति हुई है। जो पद्मासन की मुद्रा में बैठा हुआ है।
यहां से विशाल स्नानागार की प्राप्ति हुई है।
यहां से विशाल अन्नागार ,योगी की मूर्ति,हाथी का कपाल,
कांसा की नृत्य करती हुई मूर्ति, तांबे के कूबड़दार बैल, सूती कपड़ा का टुकड़ा आदि की प्राप्ति हुई है।
यहां सीप का पैमाना, घोड़े के अस्तित्व का प्रमाण की प्राप्ति हुई है।

चन्हूदड़ों :
चन्हूदड़ों पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित है ।
इस जगह का उत्खनन 1931 ईस्वी में गोपाल मजूमदार ने की।
यहां से लिपिस्टिक, दवात, कांस्य की बैलगाड़ी, इक्कागाड़ी की प्राप्ति हुई है।
यहां से ईट की प्राप्ति हुई है।
यहां के ईट पर कुत्ते एवं बिल्ली की पदचिन्ह की प्राप्ति हुई है।

कालीबंगा :
कालीबंगा भारत के राजस्थान के गंगानगर जिले में स्थित है।
इस जगह का उत्खनन 1953 में बी. बी. लाल एवं बी. के. थापर ने किया था।
यहां से जूते हुए खेत, अग्निकुंड की प्राप्ति हुई है।
यहां से युगल शवाधान का साक्ष्य प्राप्त हुआ है।
यहां से अलंकृत ईट की प्राप्ति हुई है।

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